कुछ समय पहले तक मान की शिवराज सिंह सरकार ने शासकीय स्कूलों की निजीकरण की योजना बनाई थी परंतु अब मोदी सरकार में पूरे देश में सरकारी स्कूलों के निजीकरण की तैयारी शुरू कर दी है । नीति आयोग ने दलील दी है कि पढाई – लिखाई के लिहाज से खराब स्तर वाले सरकारी स्कूलों को निजी हाथों को सौंप दिया जाना चाहिया आयोग का मानना है कि ऐसे स्कूलों को सार्वजनिक – निजी भागीदारी के तहत निजी कंपनियों को दे दिया जाना चाहिए आयोग ने हाल में जारी तीन साल के कार्य एजेंडा में यह सिफारिश की है । इसमें कहा गया है कि यह संभावना तलाशी जानी चाहिए कि क्या निजी क्षेत्र प्रति छात्र के आधार पर सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित सरकारी स्कूल को अपना सकते है ।
रिपोर्ट के अनुसार समय के साथ सरकारी स्कूलों की संख्या बढी है लेकिन इसमें दाखिले में उल्लेखनीय से कमी आई है , जबकि दूसरी निजी स्कूलों में दाखिला लेने वालों संख्या बढ़ी है । इससे सरकारी स्कूलों की स्थिति खराब हुई है । आयोग ने कहा कि शिक्षकों की अनुपस्थिति की उंची दर , शिक्षकों के क्लास में रहने के दौरान पढाई पर पर्याप्त समय नहीं देना तथा सामान्य रूप से शिक्षा की खराब गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण कारण है , जिसके कारण सरकारी स्कूलों में दाखिले कम हो रहे और उनकी स्थिति खराब हुई निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों का परिणाम खराब है । रिपोर्ट अनुसार इस संदर्भ में अन्य ठोस विचारों की संभावना तलाशने के लिये इसमें रुचि रखने वाले राज्यों की भागीदारी साथ एक कार्य समूह गठित किया जाना चाहिए ।
नीति आयोग के अनुसार , इसमें पीपीपी मॉडल की संभावना मी तलाशी जा सकती है । इसके तहत निजी क्षेत्र सरकारी स्कूलों को अपनाए , जबकि प्रति बच्चे के आधार पर उन्हें सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित किया जाना चाहिए । यह उन स्कूलों की समस्या का समाधान दे सकता है , जो खोखले हो गये हैं और उनमें काफी खर्च हो रहा है । वर्ष 2010-2014 के दौरान सरकारी स्कूलों की संख्या में 13,500 की वृद्धि हुई है लेकिन इनमें दाखिला लेने वाले पर्यों की संख्या 1.13 करोड घटी है । दूसरी तरफ निजी स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या 1.85 करोड बढी है । आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में करीब 3.7 लाख सरकारी स्कूलों में 50-50 से भी कम छात्र थे । यह सरकारी स्कूलों की कुल संख्या का करीब 36 प्रतिशत